संसद में वोटरशिप याचिका 2005
विश्वात्मा भरत गांधी व अन्य की एक ऐतिहासिक राष्ट्रहित याचिका पर कानून बनाने के लिए 137 सांसदों ने संसद में नोटिस दिया था। सांसदों ने यह तर्क दिया कि जब जनता वोट देकर हमें (सांसद-विधायकों को) वेतन-भत्ते और आजीवन पेंशन पाने लायक बनाती है, तो वोटरों (मतकर्ताओं) को भी वेतन-भत्ता मिलना चाहिए। सांसदों द्वारा पेश याचिका में इस रकम को छात्रवृत्ति (स्काॅलरशिप) की तर्ज पर ‘मतकर्तावृत्ति (वोटरशिप)’ कहा गया है। सरल भाषा में कुछ लोग वोटरशिप को वोटर पेंशन भी कहते हैं।
वोटरशिप के प्रस्ताव पर विचार करने के लिये श्री दीपक गोयल की अध्यक्षता में राज्यसभा संसदीय सचिवालय के अधिकारियों की एक कमेटी बनायी गई। गोयल कमेटी ने लंबी रिसर्च के बाद 02 दिसम्बर, 2011 को पेश अपनी रपट में वोटरशिप का प्रस्ताव मान लिया और देश के वोटर अपना मुकदमा जीत गये। किन्तु खरबपतियों के दबाव में आकर उनके पालतू दलाल दलों के अध्यक्षों ने वोटरों को मिलने वाले वोटरशिप के अधिकार का विरोध किया। इस कारण राज्य सभा के महासचिव ने वोटरशिप के मामले को लोकसभा में पेश करने की बात कह कर मामले को लटका दिया। जो संसद में सन् 2005 से लटका है।