वोटरशिप के लिए कोष प्रबंध
(1) विशेष उपयोगी समझकर सरकार ने नागरिकों के साझे धन की जो राशि कुछ विशेष लोगों को सौंपी थी, वे लोग स्वयं को इस धन का स्वामी समझ बैठे हैं, इसलिये इस धन का सार्वजनिक हित में उपयोग करने की बजाय इसका उपयोग निजी हित में, सौन्दर्यीकरण, वैभव और विलास बढ़ाने में कर रहे हैं। वोटरशिप की रकम सरकार को देना भी नहीं है, केवल वापस करना है।
(2) साझे धन का निजी हित में उपयोग होना इसी तरह का मामला है। जैसे-बैंक में जमा धन राशि को बैंक का कैशियर अपना निजी धन समझ कर अपनी हवेली बनाने में खर्च करने लगें व सरकार ऐसेे कैशियर की मदद इसलिये करे कि उसने उस रकम का एक छोटा सा टुकड़ा ‘कर’ (रिश्वत) के रूप में सरकार को दे दिया है।।
(3) कर के नाम पर उक्त रिश्वतखोरी को देखते हुए, नागरिकों के साझे धन के दुरुपयोग को देखते हुए, नागरिकों के लगातार उठते हुए शैक्षणिक स्तर को देखते हुए, सार्वजनिक विकास के क्षेत्र में लगे लोगों के गिरते चरित्र को देखते हुए याचिकाकर्तागण एक नागरिक समुदाय की हैसियत से समाज के तथाकथित उपयोगी ‘विशेष’ लोगों के नाम पर व विकास के नाम पर वोटरशिप की रकम खर्च करने के लिए अतीत में गई पॉवर ऑफ अटार्नी को खारिज करते हैं और अपनी रकम अपने पास वापस करने का सरकार से दर्खास्त करते हैं।
(4) उत्तराधिकार सीमांकन कानून बनाकर जो सम्पत्ति सीमा से अधिक आंकी जायेगी, उस सम्पत्ति की बिक्री की रकम वोटरशिप की रकम ही होगी।
(5) जो लोग मशीन के कारण पैदा हुए फुरसत के क्षणों का औसत से अधिक मात्रा में आनन्द ले रहे हैं. मशीन द्वारा की गई कमाई को निजी सम्पत्ति मानकर अपने पास रख रहे हैं, ऐसे लोग मशीन के मारे हुए नागरिकों को "मशीनी कर" के रूप में क्षतिपूर्ति दें. इस कर को वोटरशिप की रकम के स्रोत के रूप में सरकार इकट्ठा करे।
(6) जंगल और समुद्र में बिना किसी प्रयास के बहुत सी संपत्ति पैदा होती है. इस प्राकृतिक सम्पत्ति की खरीद-बिक्री व विनिमय के लिये मुद्रा का एक हिस्सा छापा जाता है। इस संपत्ति से छपने वाली नोट सभी लोगों में सामान रूप से बांटने के बजे धन के अनुपात में बाँट जाती है. कथित रूप से निजी धन के अनुपात में सरकार प्राकृतिक कर लगाकर सभी लोगों में सामान रूप से वितरित करे तो यह वोटरशिप का अधिकार देने के लिए वित्त का एक महत्त्व पूर्ण स्र्रोत होगा
(7) बैंक में धन जमा करने वाला धन स्वामी कई पीढ़ियों तक उस धन की निकासी न करे तो बैंक के मालिक को यह धन अपनी मेहनत से कमाया हुआ धन महसूस होने ही लगेगा। बैंक स्वामी का बेटा उत्तराधिकार कानून का हवाला देकर इस रकम पर अपने स्वामित्व की दावेदारी प्रस्तुत कर देगा। प्रति व्यक्ति औसत सम्पत्ति सीमा रेखा से ऊपर की सम्पत्ति इसी तरह की नागरिकों की साझी सम्पत्ति है। इस सम्पत्ति पर काबिज व्यक्ति इसे अपनी निजी मिल्कियत मानकर इसका उपयोग कर रहे हैं। निजी स्वामित्व में आभासी रूप से दिखाई पड़ने वाली सम्पत्ति के औसत से ऊपर के हिस्से का जिस हद तक सम्पत्ति स्वामी निजी हित में उपयोग कर रहा है, उस हद तक वह निजी उपभोग के बदले उस सम्पत्ति पर कर (टैक्स) देने के लिये जिम्मेदार है। संपत्ति कर की यह राशि वोटरशिप की राशि है।
(8) लोकतंत्र की रक्षा व उसके विकास और लोकतांत्रिक मूल्यों से पैदा हुए कानूनों का लाभ उठाने के एवज में के लिए सरकार "लोकतंत्र कर" के नाम से एक नया कर लगाये व इस कर के माध्यम से नागरिकों के साझे धन का कम से कम आधा हिस्सा नकद रकम के रूप में उनके जन्मना आर्थिक अधिकार के रूप में वापस करें।
(९) निष्कर्ष यह है कि वोटरशिप अधिकार देने के लिए धन का प्रबंध करने के लिए निम्नलिखित कदम सरकार को उठाना होगा. पॉवर ऑफ अटार्नी का निरस्तीकरण करारोपण ( उत्तराधिकार सीमांकन कानून + लोकतंत्र कर + संपत्ति कर + मशीनी कर + प्राकृतिक उत्पाद कर )
(1) जो लोग दूसरों का सुख देखकर दुःखी रहते हैं या दूसरों का दुख देखकर आनंदित होते है केवल वही लोग वोटरशिप की रकम वापस करने से मना करेंगे।
(2) यदि वोटरशिप की रकम सरकार उसके मूल स्वामी यानि मतकर्त्ताओं को वापस नहीं दे पाती, टैक्स देने वालोें के सामने झुक जाती है या असहाय हो जाती है, तो साबित हो जायेगा कि सरकार एक संप्रभु संस्था नहीं है। जो संप्रभु संस्था नहीं है, उसके नियमों, कानूनों, आदेशों को मानने के लिए निर्धन नागरिक भी बाध्य नहीं होगा।
(3) चूंकि वोटरशिप की रकम नागरिकों से लेकर नागरिकों को ही वापस किया जा रहा है। इसलिए सरकार द्वारा ली गई रकम को टैक्स नहीं कहा जा सकता। यह पैसा देने वाले का कर्तव्य (ड्यूटी) है.
(4) सरकार ने देश का पैसा जिन लोगों को उत्तराधिकार, ब्याज व किराये से संबंधित कानूनों द्वारा दे रखा है, उसे वापस ले सकती है व उसके मूल स्वामी यानि मतकर्त्ताओं के पास भेज सकती हैं।
(5) मतकर्त्ताओं (वोटरों) ने सरकार के नाम पॉवर आफ एटार्नी करके अपना पैसा अपने फायदे को समझकर सरकार को दे दिया था। सरकार ने इस रकम को उन लोगों के बेटों को दे दिया, जो अधिक अमीर थे। जब अमीर लोगों ने सरकार के संचालकों से एक गठजोड़ करके पैसे को मतकर्त्ताओं की इच्छा से उपयोग करने की बजाय क्रेताओं की इच्छा से उपयोग करना शुरु कर दिया और यह सच्चाई जब मतकर्त्ताओं ने जाना, तो उक्त पॉवर आफ एटार्नी को खारिज करके सरकार से अपना पैसा वापस मांग लिया। इसलिए मतकर्त्ताओं की इस मांग के आधार पर सरकार उन्हें वापस करने के लिए जो टैक्स लगायेगी, इस टैक्स को न देने का मतलब बेईमानी करना है। इसका वही दण्ड होगा, जो एक बेईमानी के अभियुक्त को कानूनन मिलती है।
(6) निजी सम्पत्ति ही किसी आदमी के पास ‘अपना पैसा’ पैदा करती है। जबकि राजशाही खत्म होने पर सूबेदारों द्वारा राज्य की सम्पत्ति पर किया गया अवैध कब्जा ही निजी सम्पत्ति का मूल उद्गम है।
आजादी मिलने पर जान बूझकर घाटे के बजट नीति बनाई गई थी। जिससे कोई व्यक्ति भारत सरकार को ‘इंड़िया कम्पनी’ न कह दे। यह नीति अभी भी चल रही है। पैसा कम होना इसका कारण नहीं है।