वोटरशिप पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (संभावना संबंधी)
(1) नागरिक इस सिद्धांत पर चलते हैं कि ‘जाते पाँव पसारिये, ताते लम्बी सौर’_ लेकिन सरकार इसके विपरीत इस सिद्धांत पर चलती है-‘जाते सौर पसारिये, ताते लम्बे पाँव’। मतलब यह है कि वोटरशिप देना होगा तो सरकार अपना कर राजस्व बढ़ा लेगी।
(2) एक मकान में 10 कमरे हैं, उसमें केवल दो-तीन लोग ही रहते है। अगर बाजार दर से एक कमरे का किराया 5,000 रूपये हो तो मकान का उपयोग 5000 X 2 = 10,000 रूपया तक हो रहा है. किन्तु 8 कमरों का उपयोग नहीं हो रहा है. सभी कमरों का इस्तेमाल करने का कानून बनाकर 5000 X8 = 40000 रूपया सरकार छाप सकती है। इस नई मुद्रा को बाजार में आने से अर्थव्यवस्था में पैसा भी बढ़ जायेगा, महंगाई भी नहीं बढ़ेगी।
(1) जो लोग दूसरों का सुख देखकर दुःखी रहते हैं या दूसरों का दुख देखकर आनंदित होते है केवल वही लोग वोटरशिप की रकम वापस करने से मना करेंगे।
(2) यदि वोटरशिप की रकम सरकार उसके मूल स्वामी यानि मतकर्त्ताओं को वापस नहीं दे पाती, टैक्स देने वालोें के सामने झुक जाती है या असहाय हो जाती है, तो साबित हो जायेगा कि सरकार एक संप्रभु संस्था नहीं है। जो संप्रभु संस्था नहीं है, उसके नियमों, कानूनों, आदेशों को मानने के लिए निर्धन नागरिक भी बाध्य नहीं होगा।
(3) चूंकि वोटरशिप की रकम नागरिकों से लेकर नागरिकों को ही वापस किया जा रहा है। इसलिए सरकार द्वारा ली गई रकम को टैक्स नहीं कहा जा सकता। यह पैसा देने वाले का कर्तव्य (ड्यूटी) है.
(4) सरकार ने देश का पैसा जिन लोगों को उत्तराधिकार, ब्याज व किराये से संबंधित कानूनों द्वारा दे रखा है, उसे वापस ले सकती है व उसके मूल स्वामी यानि मतकर्त्ताओं के पास भेज सकती हैं।
(5) मतकर्त्ताओं (वोटरों) ने सरकार के नाम पॉवर आफ एटार्नी करके अपना पैसा अपने फायदे को समझकर सरकार को दे दिया था। सरकार ने इस रकम को उन लोगों के बेटों को दे दिया, जो अधिक अमीर थे। जब अमीर लोगों ने सरकार के संचालकों से एक गठजोड़ करके पैसे को मतकर्त्ताओं की इच्छा से उपयोग करने की बजाय क्रेताओं की इच्छा से उपयोग करना शुरु कर दिया और यह सच्चाई जब मतकर्त्ताओं ने जाना, तो उक्त पॉवर आफ एटार्नी को खारिज करके सरकार से अपना पैसा वापस मांग लिया। इसलिए मतकर्त्ताओं की इस मांग के आधार पर सरकार उन्हें वापस करने के लिए जो टैक्स लगायेगी, इस टैक्स को न देने का मतलब बेईमानी करना है। इसका वही दण्ड होगा, जो एक बेईमानी के अभियुक्त को कानूनन मिलती है।
(6) निजी सम्पत्ति ही किसी आदमी के पास ‘अपना पैसा’ पैदा करती है। जबकि राजशाही खत्म होने पर सूबेदारों द्वारा राज्य की सम्पत्ति पर किया गया अवैध कब्जा ही निजी सम्पत्ति का मूल उद्गम है।
आजादी मिलने पर जान बूझकर घाटे के बजट नीति बनाई गई थी। जिससे कोई व्यक्ति भारत सरकार को ‘इंड़िया कम्पनी’ न कह दे। यह नीति अभी भी चल रही है। पैसा कम होना इसका कारण नहीं है।
(1) जब किसी वैज्ञानिक ने वायुयान का आविष्कार करके लोगों को उसमें बैठने को कहा। लोगों ने विश्वास नहीं किया कि इसमें बैठकर आदमी उड़ भी सकता है।
(2) लोग कहते थे कि धरती चपटी है. सूरज इसके चारों तरफ घूमता है। गैलीलियों नाम के वैज्ञानिक ने कहा कि धरती गोल है. धरती स्वयं सूरज के चारों तरफ घूमती है। बात गले नहीं उतारी थी, लेकिन मानना पड़ा।
(3) मोबाइल, टेलीफोन व इण्टरनेट ने असम्भव कहे जाने वाली बात को सम्भव कर दिखाया। सैकड़ों मील दूर बैठे दो लोग एक दूसरे के मन की बात जान लेते हैं.
(4) कैप्लर नाम के वैज्ञानिक ने भविष्यवाणी की कि 10.2 किलोमीटर प्रति सेकेण्ड की गति से ऊपर फेका गया पिण्ड नीचे नहीं गिरेगा. लांचर से उपग्रहों को आसमान में फेंका गया। वे धरती पर वापस नहीं गिरे। आसमान में ही रह गये। जिसकी वजह से रेडियो- टीवी-मोबाइल व इण्टरनेट आज चल रहे है। पत्थर ऊपर फेंकने से ऊपर ही रह जायेगा, यह असम्भव लगाने वाली बात मानना पड़ा।
(5) अधिकांश लोगों को भरोसा नहीं था कि राजा की गद्दी पर उसके बेटे की बजाय प्रजा का बेटा बैठ जायेगा।
(6) किसी ने नहीं सोचा था कि सीधे ग्राम प्रधानों को सरकार पैसा देगी व गाँव का विकास स्वयं उस पैसे से गाँव वाले ही करेंगे। लेकिन ऐसा हुआ।
(7) सोचा था कि जिस अंग्रेजी साम्राज्य में सूरज ही नहीं डूबता, वह साम्राज्य सिमट कर एक छोटे से देश में समा जायेगा। किन्तु ऐसा हुआ।
(1) यह मामले का बिना पूरा अध्ययन किये, अपरिपक्व टिप्पणी है। ऐसी टिप्पड़ी करने वाला वोटरशिप का मूल प्रस्ताव स्वयं वह खारिज नहीं कररहा है।
(2) कुछ लोगों को पान की दुकान खोलना भी असम्भव लगता है, कुछ लोग बड़ी-बड़ी कम्पनी खड़ी कर देते हैं। वोटरशिप का प्रस्ताव कार्यान्वित करने के लिए इन लोगों के अलावा अन्य योग्य लोग मौजूद हैं, जिनके लिए वोटरशिप लागू करना बहुत ही सहज काम है। इसलिए इसे असम्भव नहीं कहा जा सकता।
(3) यह टिप्पड़ी एक ऐसा हथियार है जिससेे वोटरशिप का विरोध भी हो जाता है और टिप्पड़ी करने वाला जनविरोध की सजा से सुरक्षित भी रहता है।
(4) वोटरशिप के नाम पर थोड़ी सी रकम देने की आवाज उठाकर अपने को अधिक व्यावहारिक साबित करके कोई व्यक्ति निजी यशेष्णा व धनेष्णा की पूर्ति कर सकता है. किन्तु यह जनहित की आवाज नहीं हो सकती. हाँ नेता हित की आवाज हो सकती है. कच्ची नाली से थोड़ा पानी खेत सींचने के लिए भेजा जाता है, तो उतना पानी नाली ही पी जाती है, खेत को कुछ मिलता ही नहीं।
(5) अंग्रेज भारत के लोगों को शासन करने के व पैसे के विवेकपूर्ण उपयोग करने के योग्य नहीं समझते थे। इसलिए उन्होंने समझा कि उन्होंने भारत पर शासन करके यहाँ के लोगों पर एहसान किया है। इसीलिए उन्होंने जनता को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोटी, कपड़ा, मकान देने का आश्वासन दिया, सीधे पैसे देने का आश्वासन नहीं दिया। अंग्रेजों की इसी मान्यता पर भारत के नेताओं ने भी शाशन किया.
(6) राजनैतिक आजादी मिलने पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने इस तर्क को खारिज कर दिया व मतकर्त्ताओं का पैसा लंदन की बजाय सीधे दिल्ली से खर्च करने लगे। नेहरू ने व संविधान सभा के माध्यम से भीमराव अम्बेडकर ने ऐसा संविधान बनाया कि मतकर्त्ताओं का पैसा खर्च करने का अधिकार दिल्ली से भी आगे प्रदेश सरकारों को भी दे दिया। इसके बाद नेहरू के शासन काल के अंतिम दौर में तथा लाल बहादुर शाश्त्री जी के शासन के दौरान विकास का पैसा खर्च करने का अधिकार जनपद स्तर तक पहुंचा। उसके बाद ब्लॉकों से होता हुआ गॉवों तक पहुंचा। अब वोटरशिप का प्रस्ताव शाशन को अंतिम कदम बढ़ाने को कह रहा है। वोटरशिप के प्रस्ताव से पैसा घर-घर अपने मूल स्वामी के पास पहुंच जाएगा। इतिहास की प्रवृत्तियों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के कारण वोटरशिप अधिकार मिलाना तय है। संसद में वोटरशिप की याचिका पहुचने के बाद वोटरशिप अभियान की प्रगति इतनी तीब्र गति से हुई है जिस पर विश्वास करना मुस्किल है.