वोटरशिप अभियान की प्रगति
वोटरशिप अभियान ने पूरे देश की राजनीति की दिशा ही बदल दिया है. भविष्य में जब विश्व विद्यालयों में शोध होगी तो पता चलेगा कि वोटरशिप अभियान ही भारत की संसद और सरकार द्वारा बनाये गए मनारेगा कानून, खाद्य सुरक्षा कानून, अधर कार्ड कानून, जनधन योजना, यूनिवेर्सल बेसिक इनकम योजना, किशन सम्मान निधि योजना का प्रमुख प्रेरणा स्रोत है.
वोटरशिप अभियान ने सरकार को यह सोचने के लिए विवश किया की लोगों को अब खजाने की राशी में हिस्सा देना ही पड़ेगा. एक व्यक्ति कई नाम से कई पते से सरकारी खजाने का पैसा प्राप्त करने में कामयाब ण होने पाए इसीलिये अधर कार्ड योजना बनाकर लोगों को पहचानने का काम सरकार ने शुरू किया.
वोटरशिप कार्यक्रम की ताकत और लोकप्रियता इस बात से पता चलाती है कि अपने जन्म के मात्र 20 वर्षों में वोटरशिप के कार्यक्रम को देश के सैकड़ो संगठनों, प्रदेशों की सरकारों और केंद्र सरकार ने अपनाया।वोटरशिप की लोकप्रियता जनता में देखते हुए लगभग 1000 राजनीतिक पार्टियों ने जनता में यह मुद्दा उठाना शुरु कर दिया है।
वोटरशिप की लोकप्रियता से मजबूर होकर केन्द्र सरकार ने २०१७ में बुनियादी आय (यूनिवरसल बेसिक इनकम) के नाम से लोगों को बिना शर्त नियमित नकद रकम देने की योजना को मंजूरी दिया.
2019 में छोटे किसानों को प्रतिमाह रुपये 500 देकर वोटरशिप को सैद्धांतिक मंजूरी दी। इसके अलावा मजदूरों को 60 साल की उम्र के बाद रु. 3000 प्रतिमाह देने की घोषणा की, इस तरह की योजनाओं की घोषणा कई प्रदेश सरकारों ने भी किया.
छत्तीसगढ़ सरकार दिसम्बर 2007 में छत्तीसगढ़ विकास पार्टी द्वारा उठाये गये वोटरशिप के मुद्दे का प्रभाव घटाने के लिए प्रदेश के सभी 36,00,000 गरीब परिवारों को रू. 3.00 प्रति किलो चावल देने की घोषणा की। यह योजना अभी भी जारी है।
बिहार में नालंदा जिले के सभी पार्टियों के जिलाध्यक्षों ने वोटरशिप और पंचायतों के जनप्रतिनिधियों को वेतन-भत्ता देने के लिए आंदोलन किया। प्रदेश सरकार को मजबूर होकर जनप्रतिनिधियों को वेतन-भत्ता देने की बात 28 मार्च 2008 को मानना पड़ा। किन्तु वोटरशिप की बात को केन्द्र सरकार का विषय बताकर टाल दिया।
वोटरशिप की लोकप्रियता से मजबूर होकर प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस ने भी इसको मुख्य मुद्दा बनाया तथा सत्ता में आने के बाद गरीबों को रु. 6000 प्रतिमाह देने की घोषणा की थी। यानी अब वोटरशिप अधिकार देने पर देश में सर्वदलीय सहमति है. जबकि सन 2000 में कोई भी सरकार और कोई भी राजनीतिक पार्टी लोगों को बिना शर्त एक पैसा भी फ्री में देने के लिए तैयार नहीं थे. गरीबों पर जब भी खर्च करने की बात आती थी, तो सन् 2004 तक आम तौर पर सभी सरकारें देश में पैसा न होने का रोना रोती थीं। लेकिन जब वोटरशिप का मामला संसद में पहुंचा, तो जनता को सीधे आर्थिक लाभ देने की घटनाएं घटने लगीं।
वोटरशिप की लोकप्रियता से मजबूर होकर प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस ने भी इसको मुख्य मुद्दा बनाया तथा सत्ता में आने के बाद गरीबों को रु. 6000 प्रतिमाह देने की घोषणा की थी। यानी अब वोटरशिप अधिकार देने पर देश में सर्वदलीय सहमति है. जबकि सन 2000 में कोई भी सरकार और कोइ भी पार्टी लोगों को बिना शर्त एक पैसा भी फ्री में देने के लिए तैयार नहीं थे.
गरीबों के नाम पर पैसे की कमी का रोना रोने वाली केन्द्र सरकार को पार्लियामेंटेरियंस कौंसिल फाॅर वोटरशिप (PCV) से जुड़े संसद सदस्यों के दबाव में आकर नरेगा (राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना) बनानी पडी। इस मद से आज गरीबों के पास लगभग 40 हजार करोड़ रूपया हर साल पहुँच रहा है। सांसदों को समजहने के लिए श्री विश्वात्मा उर्फ़ भारत गांधी ने लगभग दो साल तक नियमित स्टडी सर्किल चलाया. इस अध्ययन बैठक में 10 से २५ संसद तक नियमित शामिल होते थे. इस विषय में देखिये पार्लियामेंटेरियंस कौंसिल फाॅर वोटरशिप (PCV) का एक पत्र की प्रति.
गरीबों के नाम पर पैसे की कमी का रोना रोने वाली केन्द्र सरकार को पार्लियामेंटेरियंस कौंसिल फाॅर वोटरशिप (PCV) से जुड़े संसद सदस्यों के दबाव में आकर नरेगा (राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना) बनानी पडी। इस मद से आज गरीबों के पास लगभग 40 हजार करोड़ रूपया हर साल पहुँच रहा है। सांसदों को समजहने के लिए श्री विश्वात्मा उर्फ़ भारत गांधी ने लगभग दो साल तक नियमित स्टडी सर्किल चलाया. इस अध्ययन बैठक में 10 से २५ संसद तक नियमित शामिल होते थे. इस विषय में देखिये पार्लियामेंटेरियंस कौंसिल फाॅर वोटरशिप (PCV) का एक पत्र की प्रति.
वोटरशिप आंदोलन का ही प्रभाव था, कि केन्द्र सरकार को फरवरी 2009 में ही यह भी घोषणा करनी पड़ी कि केन्द्र सरकार देश के सभी परिवारों को रू. 3000 महीने की आय की गारंटी देने वाली योजना पर 2.5 लाख करोड़ रूपया खर्च करेगी। गरीबों के नाम पर पैसे की कमी का रोना रोने वाली केन्द्र सरकार को जब वोटरशिप के रूप में वोटरों के आर्थिक अधिकारों का सवाल उठता दिखा तो खाद्य सुरक्षा विधेयक-2011 बनाने के लिये मजबूर होना पड़ा। इसमें लगभग 100,000 करोड़ रूपया खर्च होने की संभावना है। उक्त सभी योजनाओं को मिला दिया जाये तो वोटरशिप देने के लिए जरूरी रकम के बड़े हिस्से (लगभग 14 लाख करोड़) का इंतजाम हो जाएगा। परंपरागत पार्टी होने के कारण कांग्रेेस सरकार की सोंच में कमी बस इतनी है कि वोटरों को नौकर व काम करने के लिए पालतू गुलाम मानने को तो तैयार है, किन्तु परिवार का सदस्य मानने को तैयार नहीं है। इसलिए वोटरशिप आंदोलन के दबाव में आकर सरकार वोटरों पर दया तो दिखा रही है, लेकिन उनका हक देने को तैयार नहीं है। मनरेगा, कैश ट्रांसफर स्कीम, आधार कार्ड, 35 किलो अनाज देने वाले खाद्य सुरक्षा कानून आदि कानूनों व योजनाओं से साबित होता है कि कांग्रेस सरकार वोटरशिप लागू करने की दिशा मे आगे बढ़ रही थी। इसी बात का खतरा महसूस करके सन् 2011 में खरबपतियों ने पैसा देकर निजी धन से चलने वाले टी वी चैनलों को कांग्रेस सरकार को बदनाम करने के काम पर लगा दिया व अंत में कांग्रेस 2014 का चुनाव हार गई। खरबपतियों ने वोटरशिप का काम रोकने के लिये पहले अन्ना आंदोलन करवाया, फिर अन्ना के चेले को मोहरा बनाकर अपनी एक पार्टी बनवाया। इसके बाद दिल्ली के चुनावों के बाद फरवरी, 2014 में दिल्ली की त्रिशंकु विधान सभा देखकर उन्होंने अन्ना के चेले को छोड़कर मोदी को वोटरशिप रोकने का काम सौंपा। घटनाएँ यह साबित करती हैं कि वोटरशिप के कारण सत्ता परिवर्तन के लिए भविष्य की ओर देखने की जरूरत नहीं है, सत्ता परिवर्तन इतिहास में हो चूका है. वोटरशिप भविष्य में भी कई बार सत्ता परिवर्तन का कारण बनाने वाला है.
वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल यानी वीपीआई ही वह पार्टी है जिसके कारण सरकार को और तमाम राजनीतिक दलों को वोटरशिप की आवाज उठाने के लिए विवश होना पड़ा है. वोटरशिप अधिकार दिलाने के मुद्दे परवीपीआई के संघर्षों को देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक का उपयोग करें.
वोटरशिप पर वीडियो वोटरशिप पर ऑडियो
वोटरशिप पर फोटो गैलरी वोटरशिप के लिए ट्रेनिंग
वोटरशिप के धरना प्रदर्शन वोटरशिप के लिए ज्ञापन
वोटरशिप के रैली वोटरशिप पर श्री विश्वात्मा के भाषण
वोटरशिप पर टीवी इंटरव्यू वोटरशिप पर डाक्यूमेंट्री