लोक वित्त समझें ( कुछ कहांनियां)

महात्मा को मजदूर बनाने की कथा 

राजा जी पार्क के नाम से उत्तरांचल प्रदेश में जो जंगल है, उसमें एक महात्मा वृक्षों के नीचे रहते थे। वे चिन्तन-मनन करके समाज व सृष्टि से संबन्धित नियमों का सूत्र खोजते थे। एक बार भूख लगने पर रोज की भांति उन्होंने जैसे ही पेड़ से फल तोड़ने के लिए हाथ उठाया, वैसे ही जंगल की खुफिया सूचना के आधार पर वहाँ पास में ही छिपे वन दरोगा ने महात्मा की बांह पर एक जोरदार लाठी मार दिया।

लाठी पड़ते ही महात्मा छटपटा कर जमीन पर गिर पडे और कराहते हुए बोले-‘बेटे! मुझसे क्या गलती हुई?’ 

दरोगा ने गरजते हुए कहा-‘यह जंगल भारत सरकार का हो गया है। मैं वन दरोगा हूँ। तुम लम्बे समय से चोरी करते हो सरकारी फलों की। इसलिये आज तुम्हारी चोरी पकड़ने के लिये हमने छापा मारा। देखो, तुम रंगे हाथ पकड़े गये। चलो मेरे साथ। अब तुम्हें जंगल में नहीं रहने देंगे।’ 

महात्मा संभलकर बोले-‘बच्चा! में तो बचपन से ये फल तोड़ता आ रहा हूँ। यही हमारे जीवन का आधार है। क्या भारत सरकार नाम के किसी आदमी ने ये सारा जंगल खरीद लिया’? 

दरोगा ने कहा, ‘नहीं, अधिग्रहण कर लिया। कानून बनाकर इसे सरकारी जंगल घोषित कर दिया। अब तुम फलों की चोरी नहीं कर पाओगे। चलो, उठो यहाँ से हम तुम्हें गिरफ्रतार करते हैं।’ 

दरोगा महात्मा की बाह पकड़कर घसीटने लगा और उसे गाड़ी में बैठाकर देहरादून के शहर में ले जाकर छोड़ दिया और बता दिया कि ये जो ठेले पर सेब देख रहे हो, अब इसे खाना।

महात्मा दो दिन तक इस घटना के पीछे मौजूद सरकार व बाजार के नियमों का सूत्र खोजते रहे और भूखे रहे। तीसरे दिन अपनी जगह से उठे और पास में ही सेब के ठेले के पास पहुँचकर एक सेब उठाकर मुंह से लगाया। उन्होंने सेब में दांत धंसाये ही थे कि ठेले के मालिक ने उन्हें पागल समझकर टोका और सेब हाथ से छीन लिया। छीनाझपटी में सेब का अधकटा टुकड़ा खुद ब खुद मुंह के लारों के सहारे बाहर आ गया और जमीन पर गिर पड़ा।

महात्मा ने कहा ‘बच्चा! वन दरोगा नाम के एक सज्जन आये थे उन्होंने ही ये सेब मुझे खाने को कहा था। उन्होंने कहा कि जंगल का सेब खाना चोरी है, यहाँ का सेब खाने को कहकर चले गये थे, तुम्हें हमसे तकलीफ क्यों हुई’ ? 

ठेलास्वामी ने एक 100 रुपये की नोट दिखाते हुए जवाब दिया, ‘ये नोट लाओ पहले, फिर सेब मिलेंगे’।

महात्मा ने पूछा, ‘बेटे ये नोट कहाँ मिलते हैं। ? 

ठेला स्वामी ने उत्तर दिया, ‘वो सामने देखो नाले की खुदाई चल रही है, सामने ठेकेदार खड़ा है उससे जाकर एक काम मांगो और दिन भर नाला खोदोे। शाम को वही ठेकेदार ये नोट देगा, फिर हमें नोट दोगे तो हम तुम्हें सेब देंगे।’

इस कहानी से निम्नलिखित निष्कर्ष निकलते है-

पहला-भूख से पीड़ित महात्मा को सेब के बदले बाजार ने काम करने की शर्त रख दी, महात्मा श्रमिक बन गये। उसकी मानसिक उर्वरा शक्ति कमजोर होती गई। उनका शरीर कृश हो गया।

दूसरा:-यह कि उक्त कहानी से स्पष्ट है कि जंगल की सेब प्रकृति प्रदत्त एक साझा सम्पत्ति है।

तीसरा:-यह कि इस साझी सम्पत्ति के उपभोग के लिये कार्य करने की शर्त नहीं लगाई जा सकती।

चौथा:-यह कि जंगल की इस सम्पत्ति की खरीद-बिक्री व विनिमय के लिये मुद्रा का एक हिस्सा छापा जाता है।

पांचवा:-यह कि जंगल के सेब जैसे उत्पादन के विनिमय के नाम पर छपी मुद्रा वोटरशिप की रकम है, जिसमें सभी नागरिकों को समान हिस्सा प्राप्त करने का जन्मसिद्ध अधिकार है।

छठा:-यह कि जंगल की सेब के नाम पर छपी मुद्रा जब वोटरशिप के रूप में महात्मा को मिलेगी, तो वह पुनः अपना खोजी कार्य प्रारंभ कर सकेंगे। समाज का एक खोया वैज्ञानिक उसे वापस मिल जायेगा। समाज का होता हुआ सांस्कृतिक पतन फिर से उत्थान की तरफ अग्रसर होने लगेगा।

सातवां:-यह कि सरकार का यह कर्त्तव्य है कि वह ‘प्रकृति कर’ लगाकर वोटरशिप की यह रकम इकट्ठा करें व उसका वितरण सभी नागरिकों मे समान रूप से करे।

दूध में पानी मिलाने की चमत्कार कथा  

किसी घर में दूध का कुल उत्पादन 20 लीटर है, परिवार में सदस्यों की संख्या 10 है। पीने के लिए दूध का वितरण इस प्रकार है:-

  1. क्लिंटन 8.00 लीटर 
  2. टाॅमस       5.00 लीटर    
  3. अहमद      2.50 लीटर
  4. लामा 1.50 लीटर
  5. यांग          1.00 लीटर
  6. फंग        0.75 लीटर
  7. ट्रेटास्की  0.50 लीटर
  8. महमूद        0.40 लीटर
  9. डायना       0.25 लीटर

10 विश्वनाथ    0.10 लीटर

घर में दो बच्चे और पैदा हो गये। क्लिंटन 8 लीटर दूध् पीते थे, उनसे थोड़ा दूध् नवजात शिशुओं को देने के लिए कहा गया। लेकिन वह नहीं माने। नवजात बच्चों को दूध् देने के लिए जब परिवार प्रबंधक ने दूध् में परिवार के सदस्यों की संख्या के बराबर यानि 12 लीटर पानी (60 प्रतिशत) यह सोचकर मिला दिया कि दूध् की कम से कम 0.50 लीटर मात्रा एक बच्चे के जीवन जीवन जीने के लिए आवश्यक है।


अब दूध् की कुल मात्रा 20+12=32 लीटर हो गयी और परिवार के सदस्यों की संख्या हो गई 10+2 = 12 ली.। बढ़े हुए दूध् की 12 लीटर मात्रा को परिवार प्रबंध्क ने परिवार के सभी सदस्यों ने बराबर-बराबर बाँट दिया। अब इन 12 सदस्यों पर दूध् में मिले पानी (मुद्रा प्रसार) के प्रभाव की गणना कीजिए।


N    A B C D E

क्लिंटन  8.00 9.00  +1    3.375     5.625  - 2.375

टाॅम्स  5.00 6.00 +1 2.250 3.600 -1.400

अहमद  2.50 3.50 +1 1.312     2.187  - 0.312

लामा    1.50      2.50  +1 0.937 1.562 0.062

यांग 1.00 2.0 +1 0.750 250 +0.250

फंग  0.75 1.75 +1 0.656 1.093 +0.343

ट्रेटास्की 0.50 1.50 +1 0.562 0.937 +0.437

महमूद 0.40 1.40 +1 0.525 0.875 +0.475

डायना 0.25 1.25 +1 0.468 0.781 +0.531

विश्वनाथ0.10 0.10 +1 0.381 0.718 +0.618

बच्चा 0.00 1.00 +1 0.375 0.625 +0.625

बच्ची  0.00 1.00 +1 0.375 0.625 +0.625

न्यूनतम लोगों में असंतोष            अधिक लोगों का लाभ


(यहाँ NABCDEF का आशय वही है, जो पहले उदाहरण में दिया गया हैै)यहाॅ N परिवार के सदस्यों के नाम हैं, A निजी दूध की मात्रा है, B पानी मिलाने के बाद मिले दूध की मात्रा है, C मिलावट के बाद बढ़े दूध की मात्रा है यानि D=B 12/32 बढ़े दूध में पानी की मात्रा है, E=B-D यानि मिलावट के बाद बढ़े दूध में असली दूध की मात्रा है, F=E-A यानि मिलावट के पहले और बाद में असली दूध की मात्रा में आया अन्तर है।


पहला निष्कर्ष-

मुद्रा प्रसार का प्रभाव-

(i) सब पर समान रूप से नहीं पड़ता।

(ii) इसका दुष्प्रभाव संग्रहकर्ता के संग्रह के अनुपात में पड़ता है।

(iii) यह कुछ लोगों के लिए दान मिलने जैसा होता है और कुछ लोगों के लिए कर जैसा।

(iv) इसका अच्छा या बुरा प्रभाव इस पर निर्भर होता है कि प्रसारित मुद्रा किसके पास किस अनुपात में जाती है।

दूसरा निष्कर्ष-

यदि-

(i) मुद्रा प्रसार किया जाये, और मुद्रा की उतनी मात्रा प्रसारित किया जाये, जितना जीवनयापन की न्यूनतम क्रयशक्ति का जनसंख्या में गुणनफल करने से आता है।

(ii) प्रसारित मात्रा को सभी में समान वितरण कर दिया जाये,

(iii) सुविधा देकर कल्याण करने पर अनुशासन रखा जाये,

(iv) बेरोजगारी व्याप्त हो,

(v) मशीनी उत्पादन व्यवस्था प्रचलन में हो,

(vi) राजनैतिक लोकतंत्रा प्रचलन में हो,

तो,

(i) मुद्रा प्रसार से धनिक वर्ग को लाभ होता है, कीन्स का यह निष्कर्ष उक्त तकनीकी से उलट जाता है और मुद्रा प्रसार जनसामान्य को लाभप्रद हो जाता है।

(ii) उक्त तकनीकी से सब पर समान करारोपण नहीं होता, अपितु अर्थ का न्यायिक वितरण होता है। अतः यह तकनीकी प्रो. जे.सी.एन. वकील के निष्कर्ष को बदल देती है।

(iii) निर्धनता, अशिक्षा, बीमारी, जनसंख्या वृद्धि की समस्या से निपटा जा सकता है।

(iv) देश के आर्थिक पफैसलों में जनभागीदारी बढ़ाई जा सकती है।

(v) न्यूनतम राजनैतिक अस्थिरता से अधिकतम आर्थिक संवृद्धि हासिल हो सकती है।

(vi) प्रसार पर कृत्रिम सम्पÂता का आरोप लागू नहीं होगा। कारण निम्नवत है-उत्पादन मशीन आधारित हो गया है। मांग बढ़ने पर मशीनी उत्पादन बढ़ेगा, श्रम आधारित उत्पादन घटेगा।

(vii) बेरोजगारी की उपस्थिति के कारण बेरोजगारों की क्रयशक्ति बढ़ते ही उनकी मानसिक कार्य क्षमता निष्क्रियता से मुक्त हो जाएगी और उत्पादन बढ़ाने लगेगी।

(viii) उत्पादन एवं मांग की सतत वृद्धि के कारण प्रसार से आई सम्पÂता स्थायी होगी।

(ix) कीमतें प्रसार के कारण नहीं बढ़ेगी।

(x) यदि पूर्ण रोजगार की दशा विद्यमान है, तो मांग बढ़ने से उत्पादन नहीं बढ़ेगा। परिणाम स्वरूप पूर्ण स्फीति की दशा पैदा होगी।

स्पष्टीकरण-

यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि उत्पादन के दो साधन होते हैं. पहला मानव के हाथों द्वारा किया गया उत्पादन तथा दूसरा मशीनी उत्पादन। कीन्स की बात तभी सत्य हो सकती है, जब मशीनों का पूर्ण सम्भव उपयोग का स्तर भी प्राप्त हो गया हो।

लागत प्रेरित स्फीति दो प्रकार से पैदा होती है-

लाभ प्रेरित स्फीति-ब्याज दर में वृद्धि, लाभांश आदि में वृद्धि, जिसका लाभ पूँजीपति को होता है। यह अलोकतांत्रिक स्फीति होती है।

मजदूरी प्रेरित स्फीति-मजदूरी की दर बढ़ने से लाभ मजदूरों का होता है, अतः यह लोकतांत्रिक स्फीति है।

मजदूरी प्रेरित स्फीति लाभांश प्रेरित स्फीति से बेहतर है। वोटरशिप प्रेरित स्फीति दोनों से बेहतर है। कारण निम्नवत हैं-

(i) मजदूरों के बीच आपस में प्रतिस्पर्धा के कारण सभी क्षेत्रों व संस्थानों में मजदूरी वृद्धि नहीं हो पाती। इसलिए एक क्षेत्र के मजदूर की मजदूरी में वृद्धि का भार दूसरे क्षेत्रा, दूसरे देश, दूसरे संस्थान के मजदूरों के कंधें पर स्थानांतरित हो जाता है। इस तरह मजदूर ही मजदूर के शोषण का कारण बन जाता है। वोटरशिप के समान वितरण के सिद्धांत के कारण इस कमी से सुरक्षा मिल जाएगी। मजदूर अपने साथ आर्थिक बलात्कार से मना कर सकेगा।

(ii) मजदूरी वृद्धि से सकल घरेलू उत्पादन बढ़ने की गारंटी नहीं है, किन्तु वोटरशिप से गारंटी है। इसका पहला कारण यह है कि पेट की चिंता से आजाद लोगों की दिमागी ताकत हरकत में आ जाएगी, फलस्वरूप नयी खोज एवं नये आविष्कार सामने आयेंगे, उनमें कई उत्पादन बढ़ाने वाली खोजें भी होंगी। दूसरा कारण यह है कि क्रयशक्ति हर वक्त उपलब्ध रहने के कारण मंदीजन्य उत्पादन का  ह्रास नहीं होगा।

सरकार द्वारा नोट  छापने की चमत्कार कथा   

विलियम के पास 100 रूपया है, सईद के पास 75 रूपया है, गोर्वाचोव के पास 40 रूपया है, वांग्यू के पास 25 रूपया है और राम प्रसाद के पास 10 रूपया है और ये सभी एक ही अर्थव्यवस्था के नागरिक हैं। इस अर्थव्यवस्था की संचालक सरकार ने 100 रूपये का मुद्रा निर्गमन करके अपने सभी पांचों मतकर्ताओं में बराबर-बराबर 20 रूपया वितरित कर दिया। इस शासकीय कदम का सभी लोगों पर प्रभावों का आकलन करें-कुल क्रयशक्ति = ((100+75+40+25+10)+100)=350 रूपयासम वितरण से मुद्रा प्रसार की समान मिली रकम = मुद्रा प्रसार का प्रतिशत = 40 प्रतिशत


N         A    B    C     D    E    F

विलियम      100        120        +20       48          72         -28

सईद         75          95          +20        38          57         -18

गोर्बाचोव     40          60          +20        24          36         -4

वांग्यू         25          45          +20        18          27         +2

रामप्रसाद     10          30          +20        12          18         +8

(उपरोक्त सभी संख्यायें रुपये हैं)


यहाँ N का आशय नामों से है, A का आशय मुद्रा प्रसार से पूर्व धनराशि से है, B मुद्रा प्रसार के बाद की धनराशि है (B=A+20), C हर व्यक्ति को मिला आभासी लाभ प्रदर्शित करता है, D मुद्रा प्रसार के बाद हाथ लगा प्रसार का हिस्सा है, (D=BX100/250), E प्रसार के बाद प्राप्त रकम B से प्रसार का हिस्सा D निकालने के बाद बची राशि है (E=B-D), F हर व्यक्ति को प्राप्त नफा-नुकसान रूपये में बताता है, जो मुद्रा प्रसार के बाद वास्तव में हाथ लगी राशि E में से मुद्रा प्रसार से पूर्व हर व्यक्ति के पास मौजूद राशि A को घटाने से प्राप्त होता है (F=E-A)।


पहला निष्कर्ष-

मुद्रा प्रसार का प्रभाव-

(i) सब पर समान रूप से नहीं पड़ता।

(ii) इसका दुष्प्रभाव संग्रहकर्ता के संग्रह के अनुपात में पड़ता है।

(iii) यह कुछ लोगों के लिए दान मिलने जैसा होता है और कुछ लोगों के लिए कर जैसा।

(iv) इसका अच्छा या बुरा प्रभाव इस पर निर्भर होता है कि प्रसारित मुद्रा किसके पास किस अनुपात में जाती है।


दूसरा निष्कर्ष-

यदि-

(i) मुद्रा प्रसार किया जाये, और मुद्रा की उतनी मात्रा प्रसारित किया जाये, जितना जीवनयापन की न्यूनतम क्रयशक्ति का जनसंख्या में गुणनफल करने से आता है।

(ii) प्रसारित मात्रा को सभी में समान वितरण कर दिया जाये,

(iii) सुविधा देकर कल्याण करने पर अनुशासन रखा जाये,

(iv) बेरोजगारी व्याप्त हो,

(v) मशीनी उत्पादन व्यवस्था प्रचलन में हो,

(vi) राजनैतिक लोकतंत्रा प्रचलन में हो,

तो,

(i) मुद्रा प्रसार से धनिक वर्ग को लाभ होता है, कीन्स का यह निष्कर्ष उक्त तकनीकी से उलट जाता है और मुद्रा प्रसार जनसामान्य को लाभप्रद हो जाता है।

(ii) उक्त तकनीकी से सब पर समान करारोपण नहीं होता, अपितु अर्थ का न्यायिक वितरण होता है। अतः यह तकनीकी प्रो. जे.सी.एन. वकील के निष्कर्ष को बदल देती है।

(iii) निर्धनता, अशिक्षा, बीमारी, जनसंख्या वृद्धि की समस्या से निपटा जा सकता है।

(iv) देश के आर्थिक पफैसलों में जनभागीदारी बढ़ाई जा सकती है।

(v) न्यूनतम राजनैतिक अस्थिरता से अधिकतम आर्थिक संवृद्धि हासिल हो सकती है।

(vi) प्रसार पर कृत्रिम सम्पÂता का आरोप लागू नहीं होगा। कारण निम्नवत है-उत्पादन मशीन आधारित हो गया है। मांग बढ़ने पर मशीनी उत्पादन बढ़ेगा, श्रम आधारित उत्पादन घटेगा।

(vii) बेरोजगारी की उपस्थिति के कारण बेरोजगारों की क्रयशक्ति बढ़ते ही उनकी मानसिक कार्य क्षमता निष्क्रियता से मुक्त हो जाएगी और उत्पादन बढ़ाने लगेगी।

(viii) उत्पादन एवं मांग की सतत वृद्धि के कारण प्रसार से आई सम्पÂता स्थायी होगी।

(ix) कीमतें प्रसार के कारण नहीं बढ़ेगी।

(x) यदि पूर्ण रोजगार की दशा विद्यमान है, तो मांग बढ़ने से उत्पादन नहीं बढ़ेगा। परिणाम स्वरूप पूर्ण स्फीति की दशा पैदा होगी।

स्पष्टीकरण-

यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि उत्पादन के दो साधन होते हैं. पहला मानव के हाथों द्वारा किया गया उत्पादन तथा दूसरा मशीनी उत्पादन। कीन्स की बात तभी सत्य हो सकती है, जब मशीनों का पूर्ण सम्भव उपयोग का स्तर भी प्राप्त हो गया हो।


लागत प्रेरित स्फीति दो प्रकार से पैदा होती है-

लाभ प्रेरित स्फीति-ब्याज दर में वृद्धि, लाभांश आदि में वृद्धि, जिसका लाभ पूँजीपति को होता है। यह अलोकतांत्रिक स्फीति होती है।

मजदूरी प्रेरित स्फीति-मजदूरी की दर बढ़ने से लाभ मजदूरों का होता है, अतः यह लोकतांत्रिक स्फीति है।


मजदूरी प्रेरित स्फीति लाभांश प्रेरित स्फीति से बेहतर है। वोटरशिप प्रेरित स्फीति दोनों से बेहतर है। कारण निम्नवत हैं-

(i) मजदूरों के बीच आपस में प्रतिस्पर्धा के कारण सभी क्षेत्रों व संस्थानों में मजदूरी वृद्धि नहीं हो पाती। इसलिए एक क्षेत्र के मजदूर की मजदूरी में वृद्धि का भार दूसरे क्षेत्रा, दूसरे देश, दूसरे संस्थान के मजदूरों के कंधें पर स्थानांतरित हो जाता है। इस तरह मजदूर ही मजदूर के शोषण का कारण बन जाता है। वोटरशिप के समान वितरण के सिद्धांत के कारण इस कमी से सुरक्षा मिल जाएगी। मजदूर अपने साथ आर्थिक बलात्कार से मना कर सकेगा।

(ii) मजदूरी वृद्धि से सकल घरेलू उत्पादन बढ़ने की गारंटी नहीं है, किन्तु वोटरशिप से गारंटी है। इसका पहला कारण यह है कि पेट की चिंता से आजाद लोगों की दिमागी ताकत हरकत में आ जाएगी, फलस्वरूप नयी खोज एवं नये आविष्कार सामने आयेंगे, उनमें कई उत्पादन बढ़ाने वाली खोजें भी होंगी। दूसरा कारण यह है कि क्रयशक्ति हर वक्त उपलब्ध रहने के कारण मंदीजन्य उत्पादन का ह्रास नहीं होगा।