वोटरशिप
मशीनों के परिश्रम, प्राकृतिक संसाधनों और कानूनों के अस्तित्व के कारण पैदा हुई राष्ट्रीय आमदनी सभी लोगों में समान रूप से बांटने का कानून बन जाए तो 2020 की कीमतों पर भारत के सभी एपीएल और बीपीएल वोटरों को हर महीना लगभग 8000 रुपये तक मिलने लग जाएंगे। इस हिस्सेदारी को "वोटरशिप" कहा जाता है।
वोटरशिप के घटक

देश की सकल घरेलू आय में कानूनों द्वारा कमाई का हिस्सा

देश की सकल घरेलू आय में मशीनों की कमाई का हिस्सा

देश की सकल घरेलु आय में प्राकृतिक संसाधनों का हिस्सा

वोटरशिप अधिकार को समझने में सहायक वीडियो
वोटरशिप प्रस्ताव के बारे में जानने के लिए कुछ आवश्यक दस्तावेज़

गोयल कमेटी ने लंबी रिसर्च के बाद 02 दिसम्बर, 2011 को पेश अपनी रिपोर्ट में वोटरशिप का प्रस्ताव मान लिया और देश के वोटर अपना मुकदमा जीत गये।

देखें रिपोर्ट

विश्वात्मा भरत गांधी व अन्य की एक ऐतिहासिक राष्ट्रहित याचिका पर कानून बनाने के लिए 137 सांसदों ने संसद में नोटिस दिया था। सांसदों ने यह तर्क दिया कि जब जनता वोट देकर हमें (सांसद-विधायकों को) वेतन-भत्ते और आजीवन पेंशन पाने लायक बनाती है, तो वोटरों (मतकर्ताओं) को भी वेतन-भत्ता मिलना चाहिए।

नोटिस देखें

सांसदों का विवरण देखें  

अगर गोयल कमिटी की रिपोर्ट मान ली जाती तो आज हर वोटर को हर महीने 2020 की कीमतों पर 8000 मिल रहे होते.

आंकड़े देखें 

श्री विश्वात्मा भरत गाँधी व अन्य ने 2005 में वोटरों को हर महीने वोटरशिप दिलाने का प्रस्ताव पेश किया. यह मामला 2008 से संसद में लटका है

पढ़ें संसद में वोटरशिप पर हुई कार्यवाही  (पुस्तक में)