वोटरशिप पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (गरीबों संबंधी)
(1) सारे निर्धन नागरिकों को शराबी कहना सच नहीं है। इस तर्क को मान लेने से उसकी पत्नी को भी उसका हक नहीं मिल पायेगा, जिसका पति शराब पीता हैं। जबकि बच्चों की सुचारू परवरिश के लिये व पत्नी के स्वास्थ्य की रक्षा के लिये उसका हक उसे मिलना आवश्यक है।
(2) जो निर्धन नागरिक शराब पियेंगे, वे स्वयं तंगी की सजा भोगेंगे।
(3) यह कि सभी निर्धन लोग शराब पी जायेंगे, इस तर्क को मान लेने से उन निर्धन लोगों का हक मारा जायेगा, जो शराब नहीं पीते।
(4) यह कि शराबी नागरिक के हाथ में पैसा जाने से रोकने का न तो कोई कानून है, न तो कोई परम्परा ही। अगर ऐसा कानून होता, तो शराब पीने वाले अमीर नागरिकों के हाथ में पैसा जाने से रोका जाता। इसीलिए केवल निर्धन नागरिकों को ही शराब के आधार पर उनके हक से वंचित किया जायेगा, तो यह विधि के समक्ष समता के सिद्धांत व संविधान के अनु- 14 व 15 का उल्लंघन होगा।
(5) यह कि जब तक शराब पैदा करने की फैक्ट्री लगाना कानूनी है, जब तक शराब के ठेके को लाइसेंस देना कानूनी है, जब तक शराब की खरीद-बिक्री कानूनी है, तब तक शराब पीना कुछ लोगों की नजर में अनैतिक तो हो सकता है लेकिन गैर कानूनी नहीं हो सकता और तब तक शराब पीने का तर्क देकर निर्धन नागरिकों को उनके हक से वंचित करना या तो कुतर्क है या निर्धन नागरिकों के विरुद्ध साजिश है या दोनों है।
(6) यह कुतर्क ए0बी0 संवेदी चेतना की स्वाभाविक उपज है।
(1) सरकार द्वारा पर्याप्त आर्थिक सुरक्षा मुहैया न कराये जाने के कारण निर्धन परिवारों को यह आर्थिक दुर्घटना का भय बना रहता उन्हें लगता है कि 10 बच्चे पैदा होंगे, तभी पाँच जीवित रहेंगे। शेष बचे पाँच में से 2-3 अगर नालायक निकल गये, तो कम से कम एक-दो बच्चे परिवार की आय का जरिया बनेंगे।
(2) नियमित रकम की सुनिश्चित आय देखकर निर्धन नागरिकों में भी आर्थिक सुरक्षा की मनःस्थिति पैदा हो जायेगी। अब बुढ़ापे के लिए बच्चों की आवश्यकता नहीं समझ में आयेगी. निर्धन नागरिक भी अपनी अंतर्निहित वात्सल्य की प्यास बुझाने के लिये बच्चे पैदा करेंगे, न कि परिवार की अर्थव्यवस्था के लिये।
(3) यदि अधिक बच्चे होगे तो माँ-बाप को स्वयं, तंगी की सजा भुगतनी होगी। इसी सजा की डर से निर्धन लोग भी अमीर नागरिकों की तरह ही में बच्चे कम संख्या में पैदा करने लगेंगे।
(4) अगर एक या दो बच्चे पैदा करने का कोई अभेद्य इंतजाम अतीत में होता, तो इतिहास के तमाम वे ट्टषि, महात्मा, राजनीतिज्ञ, साहित्यकार, कलाकार, दार्शनिक व वैज्ञानिक पैदा ही न हो पाते, जो अपनी माँ के चौथी, पाँचवीं, सातवीं या दसवीं संतान के रूप में पैदा हुए थे। चीन एक या दो बच्चे पैदा होने के बाद कानूनी रोक लगाया था. रोक हटाना पद गया.
(5) सरकार ने जानबूझकर जन्म के आधार पर आर्थिक भेदभाव की राजव्यवस्था कायम कर रखी है और इस व्यवस्था के माध्यम से सरकार स्वयं निर्धन नागरिकों द्वारा जनसंख्या बढ़ाने का काम कर रही है।
(6) यह कुतर्क ए0बी0 संवेदी चेतना की स्वाभाविक उपज है।
(1) मतकर्त्ता यानी वोटर को सरकार के माध्यम से मिलने वाली प्रस्तावित रकम पर उसका स्वामित्व है. इसलिए उसकी इस रकम को उसे वापस करने के लिए-काम करने की शर्त लगाना उसी प्रकार है, जैसे बैंक में धन जमा करने वाला व्यक्ति रकम निकासी के लिये जाये, तो बैंक का कैशियर उससे काम करने की शर्त रख दे।
(2) जब तक संसद उत्तराधिकार, ब्याज, किराया.. अदि कानूनों के माध्यम से कुछ लोगो को फ्री में चल अचल संपत्ति देने से पूर्व काम करने की शर्त नहीं रखती, तब तक वोटरशिप देने के लिए संसद काम करने की शर्त नहीं लगा सकती। चूकि संसद ने ऐसी शर्त केवल वोटरशिप अधिकार देने के लिए लगा रखा है, इसलिए संसद, सरकार, अदालतें और इस प्रकार के कानूनों से फ्री में धन पाने वाले लोग स्वयं विधि के समक्ष समता के सिद्धांत का उल्लंघन करने के दोषी है।
(3) यदि उत्तराधिकार, ब्याज, किराया...... फ्री में प्राप्त करने वाले सभी अमीर नागरिक निकम्मे नहीं हुए तो फ्री में वोटरशिप पाने वाले भी निकम्में नहीं हो सकते।
(4) उत्पादन तथा विकास में मशीनों की बढ़ती भूमिका को देखते हुए संसद को विकास के नाम पर आर्थिक क्रूरता व आर्थिक बलात्कार पसंद लोगों के दुराग्रहों के ऊपर अपनी मानवीय संवेदना को तरजीह देनी चाहिए और इस तर्क को खारिज करना चाहिए कि वोटरशिप की प्रस्तावित रकम के साथ कार्य करने की शर्त जोड़ी जायेा.
(5) जानवरों के पास केवल एक पेट होता है, जबकि मानव के पास दो पेट होते है। एक गर्दन के नीचे, जो रोटी मांगता है. दूसरा पेट गर्दन के ऊपर होता है, जो इज्जत का भूखा होता है। वोटरशिप की प्रस्तावित रकम जब समान मात्र में सबको प्राप्त होने लगेगी, तो प्रतिष्ठा का पात्र वही होगा, जो समान शासकीय आय के बावजूद बेहतर आर्थिक साधन-सुविधा धारक हो। इंसान के मस्तिष्क में मौजूद प्रतिष्ठा प्राप्त करने की यही प्यास वोटरशिप की रकम प्राप्त करने के बाद भी उसे कार्य करने को प्रेरित करेगी। हाँ, अब काम और रिजगार के नाम पर अपने साथ बलात्कार्य करने की अनुमति वह किसी को नहीं देगा।।
(6) यह शाश्वत सत्य है कि तीन से पाँच प्रतिष्ठित लोग हर समाज में, हर समय बेरोजगार दिखाई पड़ते ही हैं। वस्तुतः वे प्रकृति द्वारा आपातकालीन सेवायें देने के लिए पैदा होते हैं. इन्हें इन्हें जबरदस्ती कथित "काम" में उलझाना वैसी ही बात है जैसे रोज दमकल कार्यालय में बैठे पुलिस कर्मचारियों को निकम्मा कह कर किसी दूसरे काम में लगा देना ।
(1) जब सरकारी तंत्र के लोगों को पता चलेगा कि मेरे द्वारा निर्गत निर्धनता प्रमाणपत्र हर महीने नकद रकम मिलने वाली है, तो वह इस प्रमाणपत्र की अघोषित नीलामी शुरू कर देगा। इससे वोटरशिप रकम निर्धन के घर पहुँचने के बजाय भ्रष्टाचारी लोगों के घर पहुंच जायेगी। सरकार में भ्रष्टाचार रोकने के लिए चुनाव बंद करके चीन जैसा सिस्टम लागू करना पड़ेगा
(2) निर्धनता को आधार बनाकर जो रकम किसी को दी जायेगी, वह उसका हक नहीं होगी, राज्य द्वारा दी गई भिक्षा होगी। वोटरशिप वोटर का जन्मजात हक़ है.
(3) निर्धनों की आर्थिक मदद करना, उनको कम्बल बाँटना, उनके बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना जैसे तर्क, उपाय व नसीहतें कोई नई बात नहीं, बहुत पुरानी हैं। अगर इनमें कोई दम होता, तो ये उपाय अब तक निर्धनता खत्म कर चुके होते। इसलिए वोटरशिप के विरुद्ध निर्धनता भत्ता का तर्क निर्धनों के आर्थिक दर्द से पैदा नहीं हुआ है, अपितु अपने विशेषाधिकारों को बनाये रखने की चिंता से पैदा हुआ हैे।
(4) अगर खेत में खड़ी फसलों की सिंचाई करनी है, तो बीच में आने वाली कच्ची नाली को भी पीने भर का पानी देना होगा. अगर यह क्षति है, तो इस क्षति से बचने का कोई मार्ग नहीं है,