वोटरशिप पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
अधिकांश किसान जब ट्रैक्टर खरीद लेते हैं, तो बैलों को कटवा देते हैं। उसी प्रकार चैतरफा मशीनें लगा लेने के बाद अब अमीरी रेखा के ऊपर के लोग गरीबों को फालतू जनसंख्या मानने लगे हैं। गरीबों के घरों में जानबूझकर मंहगाई पैदा करके व पैसे की तंगी पैदा करके उन्हें मारने में लगे हैं। विकास के पर्दे के पीछे प्रधानमंत्री कार्यालय व योजना/नीति आयोग को इसी काम पर लगाया गया है। देश में हो रही आत्महत्यायें आर्थिक नरसंहार की इसी नीति का परिणाम है।
बैल मालिक से प्रेम करके ज्यादा अनाज पैदा करने लगेगा, तब भी बैल को रोटी नहीं, भूसा ही मिलेगा। भूसा खाने के लिए विवश बैल गरीब नहीं, गुलाम होते हैं। बैलों की तरह ही देश के गरीब नागरिक भी गरीब नहीं, कष्टात्मक काम कराने के लिये अरबपतियों द्वारा पाले गये गुलाम हैं। उन्हें मंदबुद्धि, निकम्मा, पिछले जन्म का पापी, शराबी, जुआरी व आलसी कहना या तो अज्ञान है, या उनके खिलाफ साजिश, या दोनों। रोटी के लिए काम करने की शर्त लगाना व वैभव-विलास कानूनों से फ्री में देना आर्थिक गुलामी का सुबूत है।
गरीबी पैसे की कमी के कारण नही होती, कानूनों के कारण होती है। गरीबी आर्थिक गुलामी वाले हरामखोरी रक्षक कानूनों का नतीजा है। आर्थिक गुलामी फोड़ा है, गरीबी इस फोड़े से बहने वाला मवाद। गरीबी उन्मूलन करने का मतलब होता है-मवाद की सफाई करना व फोड़े को बनाये रखना।
14 अगस्त 1947 की रात को ब्रिटेन की रानी ने कुर्सी के साथ-साथ देश की सारी सम्पत्ति का मालिकाना हक देश के सभी लोगों को दिया था। किन्तु सम्पत्ति पर 15 अगस्त के बाद भी वही लोग कब्जा जमाये रहे, जिन्होंने पहले से कब्जा किया हुआ था। यहां के नेताओं को कुर्सी मिल गई, किन्तु जनता को सम्पत्ति आज तक न मिली। अतः लोकतंत्रा में गरीब नागरिकों की आर्थिक गुलामी का खात्मा गरीबों की मदद करने से नहीं, वोटरों की साझी सम्पत्ति पर से कब्जा हटवाने से होगा, या इस सम्पत्ति का किराया वोटरों को हर महीना दिलाने से होगा। वोटरों की सम्पत्ति का यह किराया ही वोटरशिप है। वोटरशिप के बगैर आर्थिक आजादी असंभव है। आर्थिक आजादी के बगैर गरीबी का खात्मा संभव है। वोटरशिप रोटी में हिस्से जैसा है, काम से मिला पैसा भूसे जैसा।
इस आर्थिक नरसंहार को रोकने के लिए 137 संसद सदस्यों ने सन् 2005 में संसद में वोटरशिप के नाम से एक प्रस्ताव पंश किया, किन्तु अरबपतियों ने पार्टियों के अध्यक्षों को धमका दिया। अध्यक्षों ने सांसदों को व्हिप कानून का डर दिखाया। सांसदों ने आगे बढ़ने की हिम्मत नही की। संसद में यह प्रस्ताव लटक गया। गरीबी, गुलामी व आत्महत्यायें जारी है। देश अमीर होता जाएगा, ये समस्यायें आगे हजारों साल तक बनी रहेंगी।
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