वोटरशिप पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (कोष संबंधी)

1. क्या वोटरशिप देने के लिए अमीरों से टैक्स लेना सरकार के लिए संभव है?

(1) जो लोग दूसरों का सुख देखकर दुःखी रहते हैं या दूसरों का दुख देखकर आनंदित होते है केवल वही लोग वोटरशिप की रकम वापस करने से मना करेंगे।


(2) यदि वोटरशिप की रकम सरकार उसके मूल स्वामी यानि मतकर्त्ताओं को वापस नहीं दे पाती, टैक्स देने वालोें के सामने झुक जाती है या असहाय हो जाती है, तो साबित हो जायेगा कि सरकार एक संप्रभु संस्था नहीं है। जो संप्रभु संस्था नहीं है, उसके नियमों, कानूनों, आदेशों को मानने के लिए निर्धन नागरिक भी बाध्य नहीं होगा।

(3) चूंकि वोटरशिप की रकम नागरिकों से लेकर नागरिकों को ही वापस किया जा रहा है। इसलिए सरकार द्वारा ली गई रकम को टैक्स नहीं कहा जा सकता। यह पैसा देने वाले का कर्तव्य (ड्यूटी) है.

(4) सरकार ने देश का पैसा जिन लोगों को उत्तराधिकार, ब्याज व किराये से संबंधित कानूनों द्वारा दे रखा है, उसे वापस ले सकती है व उसके मूल स्वामी यानि मतकर्त्ताओं के पास भेज सकती हैं।

(5) मतकर्त्ताओं (वोटरों) ने सरकार के नाम पॉवर आफ एटार्नी करके अपना पैसा अपने फायदे को समझकर सरकार को दे दिया था। सरकार ने इस रकम को उन लोगों के बेटों को दे दिया, जो अधिक अमीर थे। जब अमीर लोगों ने सरकार के संचालकों से एक गठजोड़ करके पैसे को मतकर्त्ताओं की इच्छा से उपयोग करने की बजाय क्रेताओं की इच्छा से उपयोग करना शुरु कर दिया और यह सच्चाई जब मतकर्त्ताओं ने जाना, तो उक्त पॉवर आफ एटार्नी को खारिज करके सरकार से अपना पैसा वापस मांग लिया। इसलिए मतकर्त्ताओं की इस मांग के आधार पर सरकार उन्हें वापस करने के लिए जो टैक्स लगायेगी, इस टैक्स को न देने का मतलब बेईमानी करना है। इसका वही दण्ड होगा, जो एक बेईमानी के अभियुक्त को कानूनन मिलती है।

(6) निजी सम्पत्ति ही किसी आदमी के पास ‘अपना पैसा’ पैदा करती है। जबकि राजशाही खत्म होने पर सूबेदारों द्वारा राज्य की सम्पत्ति पर किया गया अवैध कब्जा ही निजी सम्पत्ति का मूल उद्गम है।

2. जब बजट घाटे में चल रहा हो तो क्या वोटरशिप देना सरकार के लिए असम्भव नहीं है?

आजादी मिलने पर जान बूझकर घाटे के बजट नीति बनाई गई थी। जिससे कोई व्यक्ति भारत सरकार को ‘इंड़िया कम्पनी’ न कह दे। यह नीति अभी भी चल रही है। पैसा कम होना इसका कारण नहीं है।

3. वोटरशिप देने के लिये सरकार पैसा कहाँ से लाएगी? ?

(1) जब किसी वैज्ञानिक ने वायुयान का आविष्कार करके लोगों को उसमें बैठने को कहा। लोगों ने विश्वास नहीं किया कि इसमें बैठकर आदमी उड़ भी सकता है।

(2) लोग कहते थे कि धरती चपटी है. सूरज इसके चारों तरफ घूमता है। गैलीलियों नाम के वैज्ञानिक ने कहा कि धरती गोल है. धरती स्वयं सूरज के चारों तरफ घूमती है। बात गले नहीं उतारी थी, लेकिन मानना पड़ा।

(3) मोबाइल, टेलीफोन व इण्टरनेट ने असम्भव कहे जाने वाली बात को सम्भव कर दिखाया। सैकड़ों मील दूर बैठे दो लोग एक दूसरे के मन की बात जान लेते हैं.

(4) कैप्लर नाम के वैज्ञानिक ने भविष्यवाणी की कि 10.2 किलोमीटर प्रति सेकेण्ड की गति से ऊपर फेका गया पिण्ड नीचे नहीं गिरेगा. लांचर से उपग्रहों को आसमान में फेंका गया। वे धरती पर वापस नहीं गिरे। आसमान में ही रह गये। जिसकी वजह से रेडियो- टीवी-मोबाइल व इण्टरनेट आज चल रहे है। पत्थर ऊपर फेंकने से ऊपर ही रह जायेगा, यह असम्भव लगाने वाली बात मानना पड़ा।

(5) अधिकांश लोगों को भरोसा नहीं था कि राजा की गद्दी पर उसके बेटे की बजाय प्रजा का बेटा बैठ जायेगा।

(6) किसी ने नहीं सोचा था कि सीधे ग्राम प्रधानों को सरकार पैसा देगी व गाँव का विकास स्वयं उस पैसे से गाँव वाले ही करेंगे। लेकिन ऐसा हुआ।

(7) सोचा था कि जिस अंग्रेजी साम्राज्य में सूरज ही नहीं डूबता, वह साम्राज्य सिमट कर एक छोटे से देश में समा जायेगा। किन्तु ऐसा हुआ।